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हैं इसलिए तप ही दुरतिक्रम है । ब्रह्महत्यादि पाप और अनेक प्रकारके अकृत्य करनेवाले तपके सामर्थ्य से उक्त पावसे मुक्त हो जाते हैं । तपके बलसे कीट सर्प पतंग पशु पक्षी और स्थावर प्राणी तक स्वर्गको चले जाते हैं ।
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सज्जनो | स्वामीजी जिस संप्रदाय के संस्थापक हैं, वह तो, ( तपकी बात तो दरकिनार ) सिर्फ पावभर घी जलाकर 'पांच मिनिटमें ही अंत्यजों को भी शर्मा वर्मा बना रही है ! हम नहीं समझते कि, कर्म मात्रसे वर्ण व्यवस्था स्थापित करनेका झंडा लिये फिरनेवाले सरस्वतीजी महाराज उत्तम -कर्म के अनुष्ठानसे होनेवाली चोरकी सद्गगति से क्यों हिचकते हैं ?. [ ७ ]
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स्वामीजी कहते हैं कि, " "अब देखिये इनके साधु और गृहस्थोंकी लीला इनके मतमें बहुतसे कुकर्म करनेवाला साधु भी मोक्षको गया और श्री कृष्ण नरकमें गया । " सज्जनो ! स्वामीजीका उक्त कथन सत्य से बहुत गिरा
करनेका उपदेश तथा ऐसा उल्लेख कहींपर
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हुआ है ! जैन ग्रंथों में साधुको कुकर्म कुकर्म करने से कोई साधु मोक्षको गया नहीं । केवल द्वेषबुद्धिसे निंदनीय कर्मका किसी पर आरोप करना आप जैसे सन्यासीके लिए उचित नहीं था ! जैन लोग कृष्णको तीसरे नरक में गया मानते हैं यह बात सत्य है परंतु प्रतिदिन प्रतिक्रमण [संध्या] में दोनों वक्त उसको वंदना भी करते हैं यह भी सत्य है । क्योंकि इनके सिद्धांतानुसार कृष्णने आगेको अमम नामा बारवां तीर्थंकर होना है । इसके आगे स्वामीजीका " भला कोई बुद्धिमान् पुरुष विचारोंकि इनके साधु " गृहस्थ और तीर्थंकर जिनमें बहुत से वेश्यागामी परस्त्रीगामी " चोर आदि सभ जैनमतस्थ स्वर्ग और मोक्षको गये औ