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करेंगे, जिसका कि, उल्लेख किसी माननीय जैन ग्रंथों हो ! जैन ग्रंथों में चारित्र भ्रष्ट शिथिलाचारी साधुको गुरु अथवा उत्तम मानकर सेवा पूजा करनेका उल्लेख हमारे देखनेमें नहीं आया, इसलिए जैन सिद्धांत के विरुद्ध विवेकसारके किए गए उल्लेखके उत्तर दाता जैन नहीं हो सकते ! जैसे कि आज कलके संसार वंचक विषयानंदी कितनेक वावा लोग अपनेमें अंध संसारकी गुरु भावना स्थित रखने के लिए अनेक प्रकारके चागजाल शास्त्रोंके नामसे रचते हैं, निस्संदेह सत्यार्थ प्रकाशमें उद्धृत किया हुआ विवेकसारका उक्त लेख भी इसी प्रकारका है ! यह एक स्वाभाविक नियम है कि, संसारमें कमानेसे कमीना मनुष्य भी अपनी प्रतिष्ठाके लिए अनेक प्रकारकी युक्तिएं ढूंड निकालता है और वे कितनेक मूर्योपर कारामद भी हो जाती हैं ! परंतु विचार प्रिय मनुष्योंके हृदयपर उनका अणुमात्र भी असर नहीं हो सकता.
विवेकसारके अंदर बहुतसी ऐसी बातें पाई जाति हैं, जो कि, जैन धर्मके मंतव्यसे सर्वथा विरुद्ध हैं! केवल स्वार्थको सिद्ध करने के लिए ही जैन ग्रंथों के नामसे उनका उल्लेख किया गया है ! भाजकल ऐसे बहुतसे ग्रंथ देखने में आते हैं जिनमें स्वार्थि लोगोंने जैन धर्मके नामसे ही अपनी दुकान चलानेका प्रयत्न किया है। हाल ही में जैन धर्मके नामसे एक तिवर्णा . चार नामका ग्रंथ प्रकाशित हुआ है उसके संबंध जैन हितैपी. मासिकमें निकलनेवाली समालोचनाको जिन लोगोंने पढ़ा. होगा वे समझ सकते हैं कि उसके लेखक महाशयने किस कदर धूलकी मुट्ठीसे सूर्यको ढांपनेका साहस किया है ! ऐसी. ही दशा विवेकसारकी है ! उदाहरणके लिए अंक ३-४. का ही उक्त लेख ले लीजिए । जैन ग्रंथोंमें चरित्र भ्रष्ट साधु