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कोई असंभव नहीं ! अभ्यास से सब कुछ साध्य हो सकता है ! यदि इस वक्त ( उक्त नर्तकाचार्यजी के समय में ) स्वामीनी विद्यमान होते तो उन्हें अपनी भूल सुधारनेका अवश्य
मौका मिलता !
[ २ ] अरणक ( अर्हन्नक ) मुनि और दृंहण कुमारकी बात स्वामीजीने जो कुछ लिखा है उसमें इतना भी सत्य नहीं जितनी कि उड़द के दानेपर सफेदी होती है ! अर्हनक गुनि विषयसेवन करता हुआ देवलोकको गया और ढंडण कुमारको स्यालिया ( गीदड़ ) उठा ले गया इस प्रकारका उल्लेख हमने जैन ग्रंथों के अतिरिक्त स्वामी महोदय के बताये हुए विवेक सारमें भी नहीं देखा ! इसलिए हमे करना पड़ता है कि, स्वामीजी संसारको धोखेमें डाल रहे हैं ! मध्यस्थ पुरुष इस पर अवश्य ध्यान दें !!
[ ३-४-५ ]
हम प्रथम पाठकोंकी सेवामें निवेदन कर चुके हैं कि, विवेकसारमें कथन की हुई बातोंमेंसे हम उसी पर विचार
नाचते समय थालियां सरकती और घूमती भी हैं पर न तो उनका पानी ही छलकता है और न उनके घूमने में कुछ स्कावट ही होती है दो तीन थालियों पर आप खड़े हो जाते हैं ! इच्छा करने हीसे आप किसी भी थाली की गति बदल सकते हैं । यदि एक पैरके नीचेकी दो थालियां एक तर्फको घूमती हैं तो दूसरेकी एक दूसरी तर्फको !... सरसोंमें तारपर नाचनेवाले लोग छातेकी शरण लेकर अपने प्रयोग करते हैं पर पंडितजीको छाते वातेकी आवश्यकता नहीं रहती । आन बिना छाते या किसी अन्य चीजकी सहायताके सुगमतापूर्वक तारपर भी नाचते हैं " इत्यादि - [ सरस्वती भाग १३ संख्या २] उक्त नर्त्तका चार्यजी अभी विद्यमान हैं. ' लेखक ' ॥