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सुवोध जैन पाठमाला-भाग २
की दृष्टि से वेश्यागमन है। वह भी अतिचार है, अनाचार नहीं। व्यवहार से वेश्यागमन करना तो अनाचार ही है।
अन्यत्र भी जहाँ कोई ऐसे अतिचार, जो अनाचार दिखाई द, वहाँ उन्हें अनाभोग, देश-भङ्ग आदि की अपेक्षा अतिचार समझना चाहिए।
प्र० : अल्प-वय-वाली किसे कहते हैं ?
उ० : जिसे अभी ऋतुधर्म प्रारभ नही हया हो। (स्त्री के लिए, 'जिसका वीर्य पका नहीं'-ऐसा पति अल्प वय वाला है। उसे वीर्योत्तेजक औषधियों खिलाकर गमन करने से स्त्री को यह अतिचार लगता है।)
प्र० : अनंग-क्रीड़ा किसे कहते हैं ?
उ० · काम-सेवन के जो प्राकृतिक अंग हैं, उनसे अन्य अंगो के द्वारा स्वस्त्री से या पुरुष से या अन्य स्त्रियो से या पुतली आदि से गमन करना। इसी प्रकार पराई स्त्रियो से या पुरुषो से आलिङ्गन चुम्बनादि करना। वीर्य स्खलन के पश्चात्, भी स्वस्त्री से गमन करना, हस्तकम करना। . प्र० : 'पर-विवाह-करणे' की व्याख्या कीजिये ।
उ० : अपना और अपनी सतान और इसी प्रकार जिनका विवाह करने का कार्यभार स्वय पर आ पडा हो, उनके अतिरिक्त दूसरो का विवाह करना, इसी प्रकार विधवा-विवाह कराना, वर्तमान पत्नी उपरात अन्य विवाह का त्याग होने पर अन्य स्त्री से विवाह करना। अपने पुत्रादि का एक वार विवाह करके फिर विवाह करने का त्याग ले लेने के पश्चात् उनका विवाह करना । जिस कन्या का पर-पुरुष के साथ