________________
सूत्र-विभाग-११ 'ब्रह्मचर्य प्रणुव्रत' प्रश्नोत्तरी [ ६५ ३ अनंगकीडा : अनग क्रीडा की हो, ४. पर-विवाह करणे : पराये का विवाह नाता कराया हो, ५. कामभोगतिव्वा : काम भोग की तीव्र अभिलाषा की भिलासे
हो, जो मे देवसियो : इन अतिचारों में से मुझे जो कोई अइयारो को दिन सबधी अतिचार लगा हो, तो
तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। 'ब्रह्मचर्य अणुव्रत' प्रश्नोत्तरी । प्र० : स्व-स्त्री सतोष कितने प्रकार से हो सकता है ?
उ० नाना प्रकार से हो सकता है। जैसे-एक विवाह उपरान्त या वर्तमान विवाहित स्त्री से अन्य विवाह नहीं करूँगा। वर्तमान स्त्री स्वर्गवास हो जाने पर या इतने वर्ष के उपरान्त स्वर्गवास हो जाने पर अन्य विवाह नही करूँगा। वर्ष मे ......" या मास में ........ दिन से अधिक अब्रह्मचर्य सेवन नही करूंगा। इतने वर्ष के हो जाने पर सर्वथा ब्रह्मचारी रहूँगा। दिवा ब्रह्मचारी रहूँगा । .......... पक्ष मे ब्रह्मचारी रहूँगा । ... ..'' तिथियो को ......... पर्यों को तथा श्रावरण-भाद्रपद मास -मे ब्रह्मचारी रहूँगा। आदि ।
प्र. वेश्यागमन प्रतिचार है या अनाचार है ?
उ० किसी अन्य षड्यन्त्रकारी के प्रलोभन से वेश्या स्वस्त्री के समान बन जाय और ऐसे समय कोई भुलावे मे आकर वेश्या का आभोग न होने से उससे गमन कर ले, तो उसे अतिचार लगता है, अनाचार नही या वेश्यागमन की भावना से वेश्या से पालाप-सलाप-रूप व्रत का देश-भग करना, 'वेगमनय'