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________________ ૬૪ ] वसेस ( सम्व) मेहस्य - विहि पच्चरखामि सुबोध जैन पाठमाला - भाग २ एगविहं एमविहेप न करेमि कायar जावज्जोवाए । देव देवी सम्बन्धी दुविहं तिमिहेयं, न करेमि न कारचेनि, सरपला वयसा कायसा । तथा मनुष्य तिर्यञ्च सम्बन्धी २. इत्तरिय परियहिया नामरखे २. परिहिया गमरपे 1 : अन्य स्त्रियों (पुरुषों) सें : ( सभी से, सव्व शब्द ब्रह्मचारी "सदार सतोसिए ग्रवसेस' के स्थान पर कहें ) . : मैथुन - सेचन का : प्रत्याख्यान करता ( करती ) हैं ऐसे चौथे स्थूल मैथुन विरमण व्रत के पच अइयास जाखियन्वा न समायरियध्वा तंजहा -ते थालोड : एक करण एक योग से (मैथुन - सेवन) : नही करूँगा : काया से (सूई डोरे के न्याय से ) श्रतिचार पाठ चौथा स्थूल स्वदार (पति) संतोष परदार (शेप स्त्री-पुरुष ) विवर्जन रूप मैथुन विरमरण व्रत के विषय मे जो कोई अतिचार लगा हो, सो ग्रालोड़ें, : इत्वर परिगृहीता ( ग्रत्प वय वाली स्वस्त्री या वेळा) से गमन किया हो, * अपरिगृहीता ( सगाई की हुई स्वस्त्री या अनाथ कन्यादि) से गमन किया हो, चैतस्स भन्ते ! ये दोनो पाठ मिलाकर इस पाठ से ब्रह्मचर्य जत सेना चाहिए ।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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