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सूत्र-विभाम-१०. प्राचार्य अशुद्रत प्रश्नोत्तरी [६१ पर किसी वस्तु को ली जाती है, तो ये चोरियाँ हैं, पर बड़ी चोरियां नहीं। अतः इनका प्रागार समझने की दृष्टि से रक्ता गया है।
प्र० : 'तेनाहडे' की व्याख्या कीजिए।
उ० : चोर की चुराई वस्तु, पूरी या उसके कुछ भाग को बिना मूल्य, पूरा मूल्य या कुछ मूल्य देकर लेना।
प्र० : 'तक्करप्पनोगे' मे और वया सम्मिलित हैं ?
उ० : चोर को चोरी की प्रेरणा देना, संकट में बचाना या बचाने का आश्वासन देना आदि।
प्र० : राज्य-विरुद्ध काम किसे कहते हैं ?
उ० : सुराज्य-नीति के अनुकूल शासकों ने जो भो । आवश्यक और उचित नियम लमाएँ हो, उनका भङ्ग करना। जैसे निषिद्ध वस्तुएँ बेचना-खरीदना, निषिद्ध राज्यो मे बेचनाखरीदना, कर न देना आदि।
प्र० : कूट तौल-माप किसे कहते है ?
उ० : देने के हल्के और लेने के भारो, पृथक-पृथक तौल-माप रखना या देते समय कम तौलकर देना, कम माफ कर देना, इसी प्रकार कम गिनकर देना या खोटी कसौटी लगाकर कम देना। लेते समय अधिक तौलकर, अधिक मापकर, अधिक गिनकर तथा स्वर्णादि को कम बताकर लेना आदि।
प्र०': 'तप्पडिस्वग-ववहारे की व्याख्या बताइए।
उ० : अधिक मूल्य की वस्तु मे कम मूल्य की वस्तु मिलाकर बेचना । उत्तम वस्तु को दिखलाकर निकृष्ट वस्तु