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सूत्र-विभाग-१०. 'प्रचौर्य अशुव्रत' प्रत पाठ
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पाठ १० दशवां 4. 'अचौर्य अणुव्रत' व्रत पाठ
तीसरा अणुव्रत 'थूलाओं' प्रदिपणा दारणाओ : अदत्तादान (चोरी से) वेरमरणं १. खात खकर, २. गांठ खोलकर, ३. ताले पर कुँची लगा कर, ४. मार्ग मे चलते ,को लूट कर, ५ पड़ी हुई धरिणयाती (किसी के अधिकार की) मोटी वस्तु जानकर लेना, इत्यादि मोटा अदत्तादान का पञ्चक्खारण, (करता हूं)। १. सगे सबंधी, २. व्यापार सबंधो तथा ३. पड़ी निभ्रमी (शंकारहित) वस्तु के उपरांत अदत्तादान का पञ्चवखारण (करता हूँ)। जीवजीवाए दुविहेणं तिविहेरणं, न करेमि न कारवेमि, मरगसा, वयसा, कायसा ।
अतिचार पाठ ऐसे तीसरे स्थूल अदत्तादान तीसरे स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत के पच अइयारा विरमण व्रत के विषय मे जारिणयव्वा न सामायरियव्वा जो कोई अतिचार लगा तंजहा-ते आलोउ- हो, तो आलोउ, १. तेनाहडे .. : चोर को चुराई वस्तु ली हो, २. तक्करप्पभोगे : चोर को सहायता (आदि).दी हो, ३. विरुद्ध-रज्जाइक्कमे : राज्य-विरुद्ध काम किया हो, ४. कूड-तुल्ल-कूडमाणे : कूडा (खोटा) तोल, कूड़ा माप
किया हो,
'थूलग भेते ! अदिण्णादाणं पच्चक्खामि ।' इतना मौर। तस्स भते ! पडिकमामि ४... .. "। इतना प्रौर ।