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५८] सुबोध जन पाठमाला--भाग २
३. स्थान : 'हिंसा तीव्र राग-द्वेप से होती है। प्रत्यक्ष दुःख देती है, तत्काल दु ख देती है और प्रारणो का नाश करके बहुत दुख देती है। परन्तु झूठ अपेक्षाकृत मन्द राग-द्वेष से होता है, उसका दु.ख प्रायः पीछे झूठ का ज्ञान होने पर, परोक्ष में होता है और प्रायः प्राण-नाश न होने से हिंसा की अपेक्षा कम दुख होता है । इसलिए हिंसा के 'त्याग से झूठ का त्याग गौरण है। अत प्राणातिपात विरमण के पश्चात् मृषावाद विरमण को तीसरा स्थान दिया है।
४. फल : स्थूल झूठ सवधी सकल्प-विकल्प से मुक्ति, सव लोगों मे विश्वास, विरोधी भी वचन को प्रमाण माने । न्यायाधीश आदि पद की प्राप्ति। व्यापार आदि मे सफलता। झूठजन्य वैर नही बँधता आदि। जन्मान्तर मे उक्त फल के साथ सत्यवादिता, मधुर कठ, प्रभावशाली वाणी, वचन-सिद्धि आदि की प्राप्ति।
५. कर्त्तव्य : 'मेरे इस वचन का क्या फल होगा?' इसका विचार। गोपनीय बातो को पचाना। आरोपादि आने पर धैर्य रख कर नीति से निवारण करना। बिना प्रमाण कोई कथन न करना। हित-मित वाणो कहना। वचन का पालन करना। समय पर सत्य वचन कहना।
६. भावना : सूक्तादि पर विचार करना। पूर्ण सत्य कव प्राप्त हो ? यह मनोरथ करना। सत्य की अपूर्णता का खेद करना। सत्य-त्याग का अशुभ फल पाने वाले महाबल (मल्लीनाथ) आदि की और सत्य के लिए शरीर अर्पण करने वाले सत्यवादी हरिश्चन्द्र आदि की कथानो पर ध्यान लगाना।