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मूत्र-विभाग-८. 'अहिंसा अणुव्रत' का पाठ
पाठ ८ आठवाँ
६. 'अहिसा अणुव्रत' व्रत पाठ
पहला अणुव्रत 'थूलाओ पारगाइवायाओं वेरमा • त्रस जीव
. पहला अणुव्रत : स्थूल (बडी) : प्राणातिपात (जीव-हिसा से) : विरमण (विरति करना, हटना) : दुख से बचने के लिए चलने फिरने
वाले
बेइन्दिय
: द्वीन्द्रिय (दो इन्द्रिय वाले), तेइन्दिय
: त्रीन्द्रिय (तीन इन्द्रिय वाले), चउरिन्दिय
: चतुरिन्द्रिय (चार इन्द्रिय वाले), पचिन्दिय
: पञ्चेन्द्रिय (पाँच इन्द्रिय वाले इन्हे) १ जान के पहिचान के, २. संकल्प करके उसमे १ सगे सम्बन्धी तथा स्व शरीर के भीतर मे पीड़ाकारी तथा ३. सापराधी को छोड़ निरपराधी को, ४. प्राकुट्टो से हनने का पञ्चवखारण (करता हूँ)। जावजीवाए : जब तक जीवन है दुविह तिविहेणं : दो करण और तीन योग से १. न करेमि : हिंसा न करूँ २. न कारवेमि
: तथा न कराऊँ (इन दो करणो से) १. मरणसा २. वयसा : मन से, वचन से (तथा)
थूिनंग मन्ते । पाणावा पारखामि' इतमा पौर।