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सुबोध जैन पाठमाला-भाग २ उपायो मे दूसरा स्थान दिया गया है। उक्त सूक्तो के अनुसार यद्यपि सम्यग्दर्शन ही पहला है, पर व्यावहारिक दृष्टि से सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति और रक्षा सम्यग्ज्ञान से होती है, अत सम्यग्ज्ञान को पहला स्थान देकर सम्यग्दर्शन को दूसरा स्थान दिया है।
४. फल . देव, गुरु, धर्म सबधी दृष्टि की शुद्धि होती है । सम सवेगादि सद्गुणो की प्राप्ति होती है। श्रुत धर्म व देव गुरु के प्रति अनुराग उत्पन्न होता है। तत्वज्ञान मे नि शकता और धर्म-क्रिया मे धैर्य उत्पन्न होता है। स्याद्वादपूर्ण अनेकात दृष्टि उपलब्ध होती है। धार्मिक मिथ्या अभिनिवेश दूर होता है। भवान्तर मे उक्त फल अधिक पुष्ट और दृढ होता है।
५. कर्त्तव्य : सम्यक्त्व की पुष्टि के लिए परमार्थ सस्तवादि ४ वोल करना। सम्यक्त्व शुद्धि के लिए शकादि ५ बोल वर्जना। सम्यक्त्व रक्षा के लिए वदनादि छह यतना पालना। सम्यक्त्व टिकाव के लिए 'जीव है' प्रादि छह बोल पर चिन्तन करना। सम्यक्त्वियो की वृद्धि के लिए धर्म-कथादि पाठ प्रभावना करना।
६. भावना : सूक्तादि पर विचार करना । 'मुझे क्षायिक सम्यक्त्व कव प्राप्त होगी?" यह मनोरथ करना, श्रद्धा की कमी का खेद करना। मिथ्यात्व के दुख और मिथ्यात्व सहित क्रिया की विफलता का विचार करना। सम्यक्त्व भ्रष्ट 'नद मणिकार' आदि के तथा सम्यक्त्वपालक 'श्रेणिक', 'सुलसा' आदि के चरित्र पर ध्यान देना।