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सूत्र-विभाग-७ सम्यग्दर्शन निवध [ ४३ प्रत्याख्यान :
मैं नित्य ......... नमस्कार मत्र "." • माला ......." आनुपूर्वी ....... मागलिक " वार गिनंगा । नित्य उठते ही भावपूर्वक देव को गुरु को ... वार वंदना करूंगा।
जानकारी, शरीर मे सुखशाता तथा अन्य अनुकूलता के रहते हुए, जहाँ भी रहूँ, उस ग्राम, नगर मे विराजित साधु साध्वीजी के प्रतिदिन या मास मे ... • चार दर्शन करूँगा।
सर्वथा/ . ... व्यसन सेवन नहीं करूंगा। सर्वथा/ ...... रात्रि-भोजन नही करूँगा। सर्वथा/ . ... .. उपरांत अनन्तकाय नही खाऊँगा।
देवाभियोगादि छह आगारों को छोड कर अन्यमती देव, गुरु तथा वेश, श्रद्धा या प्राचार से अन्यमती बने हुए जैनी की संगति नही करूंगा।
सम्यग्दर्शन निबंध
१. सूक्तः १. सद्धा परम दुल्लहा, (कदाचित् सम्यग्ज्ञान सुनने को मिल सकता है, पर उस पर) श्रद्धा होना परम दुर्लभ है-उत्तरा० । २ जिसे सम्यग्दर्शन (श्रद्धा) नही है, उसका ज्ञान 'सम्यग्ज्ञान' नही है-नन्दी० । ३ सम्यग्दर्शन, चारित्र धर्म का मूल है, द्वार है, नीव है, पृथ्वी है, भाजन और पेटी है। - ४. सम्यग्दर्शन से ससार परित्त (सीमित) हो जाता है-प्रज्ञा० ।
२ उद्देश्य : मिथ्यात्व (श्रद्धा का अभाव और . मिथ्याश्रद्धा) को नष्ट करके सम्यक्त्व का उदय करना।
३. स्थान : अज्ञान के पश्चात् मिथ्यात्व को नष्ट करना आवश्यक है। इसलिए उसके नाशक सम्यग्दर्शन को मोक्ष के