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४२ ] - सुबोध जन पाठमाला--म २ समाधान कर लेना आवश्यक है, अन्यथा वह जिज्ञासा-रूप शंका भी अतिचार-रूप शंका बन सकती है।
प्र० : परमत ग्रहण की इच्छा क्यों होती है ?
उ० : अन्यमतियो के तप-त्याग, आडंबर-चमत्कार, पूजा आदि देखकर तथा उनकी कथा-विवेचना आदि सुनकर परमत ग्रहण करने की आकांक्षा होती है।
प्र · तप-त्याग को देखकर तप-त्याग की इच्छा होना अतिचार क्यो ?
उ: उनके तप-त्यागादि को देखकर यह इच्छा होना कि-'जिन्हें अपूर्ण, अशुद्धिमिश्रित धर्म मिला है, वे भी इहलौकिक भौतिक सुख छोडकर आत्मा के लिए, पारलौकिक सुख के लिए (या राष्ट्र आदि के लिए इतना तप-त्याग करते हैं, तो हमे पूर्ण और शुद्ध धर्म मिला, 'हम में तप-त्यागादि कितना होना चाहिए ?' ऐसे विचार अतिचार नहीं हैं। पर उन्हें देखकर, मिले हुए पूर्ण और शुद्ध धर्म को छोडकर अपूर्ण व अशुद्ध धर्म ग्रहण करने की इच्छा करना, अतिचार है।
प्र० : जब अन्यमत में भी तप-त्यागादि कुछ गुण हैं, तक उसकी प्रशसा करना अतिचार क्यो ?
उ० : अन्यमत में रही अपूर्णता और अशुद्धता को बतलाने के साथ यदि अन्यमनो के गुणो को भी कहा जाय, तो __ अतिचार नही है, पर अन्यमत की ऐसी प्रशसा करना, जिससे सुननेवाला पूर्ण और शुद्ध धर्म से हटकर हानि प्राप्त करे, वह अतिचार है।