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सुबोध जैन पाठमाला-भाग २
पंच अइयारा पेयाला : (पाँच प्रधान अतिचार जारिणयव्या
: जो जानने योग्य हैं, किन्तु न समायरियव्वा' : पाचरण करने योग्य नहीं है। तंजहा
: वे इस प्रकार हैं-उनमे से) ते पालो
: जो कोई अतिचार लगा हो तो
__ आलोउ१. संका
: श्री जिन-वचन मे शंका की हो, २. कंखा
: पर-दर्शन की आकाक्षा की हो, ३. वितिगिच्छा . धर्म के फल में संदेह किया हो, (या
त्याग-वृत्ति के कारण शरीर-वलपात्र आदि मलिन देख कर संत
सतियो की घृणा की हो) ४, परपासंड-पसंसा : पर-पाखण्डी (अन्य मती) की प्रशंसा
की हो, ५. परपासंड-संयवो पर-पाखण्डी का परिचय किया हो,
प्रतिक्रमगा पाठ जो मे देवसिमो : मेरे' सम्यक्त्व-रूप रत्न पर (दिन । प्रइयारो को : सम्बन्धी) मिथ्यात्व-रूपी रज मैल
__ लगा हो, तो तस्स मिच्छा मि दुक्कई । 'अरिहन्तो महदेवो' प्रश्नोत्तरी प्र० . तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञानियो की सेवा क्यों करनी चाहिए? . उ० : इसलिए कि ये दोनो बोल १. नूतन ज्ञान-प्राप्ति, २प्राचीन सदेह-निवारण, ३ सत्यासत्य निर्णय, ४,अतिचार-शुद्धि