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सूत्र-विभाग-७ 'अरिहतो-महदेवो' का पाठ
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पाठ ७ सातवाँ ५ 'अरिहंतो-महदेवो' दर्शन (सम्यक्त्व)
का पाठ
(१. अरिहतो महदेवो : (अरिहन्त मेरे देव है। जावज्जीवाए : (और) जब तक जीवन है २. सुसाहुणो गुरुगो : सच्चे साधु गुरु है। जिग पण्णत्त :: अरिहत द्वारा कहा हुआ तत्त
: तत्व (उपदेश, धर्म) है। इन सम्मत्त
: इस प्रकार सम्यक्त्व मए गहिय) ॥१॥ :: मैने ग्रहण की है।) १ परमत्थ
परमार्थ का (नव तत्वो का) सथवो वा
: सस्तव (ज्ञान) करना २. सुदिट्ठ-परमत्थ : परमार्थ (नव तत्व) के अच्छे
जानकारो की सेवरणा वावि : सेवा (प्रशसा-परिचय) करना ३ वावरण
: व्यापन्न (सम्यक्त्व भृष्ट) और ४ कुदसरण : कुदर्शन (अन्यमति) की वज्जरणाय
: सगति (प्रशसा-परिचय) वर्जना सम्मत्त
: ये चार कार्य सम्यक्त्व के सद्दहरणा ॥२॥ : श्रद्धान (दर्शक, उत्पादक व रक्षक) है।
अतिचार पाठ इन सम्मत्तस्स • इस प्रकार श्री समकित रत्न पदार्थ
के विषय मे