SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र-विभाग-७ 'अरिहतो-महदेवो' का पाठ ३६ पाठ ७ सातवाँ ५ 'अरिहंतो-महदेवो' दर्शन (सम्यक्त्व) का पाठ (१. अरिहतो महदेवो : (अरिहन्त मेरे देव है। जावज्जीवाए : (और) जब तक जीवन है २. सुसाहुणो गुरुगो : सच्चे साधु गुरु है। जिग पण्णत्त :: अरिहत द्वारा कहा हुआ तत्त : तत्व (उपदेश, धर्म) है। इन सम्मत्त : इस प्रकार सम्यक्त्व मए गहिय) ॥१॥ :: मैने ग्रहण की है।) १ परमत्थ परमार्थ का (नव तत्वो का) सथवो वा : सस्तव (ज्ञान) करना २. सुदिट्ठ-परमत्थ : परमार्थ (नव तत्व) के अच्छे जानकारो की सेवरणा वावि : सेवा (प्रशसा-परिचय) करना ३ वावरण : व्यापन्न (सम्यक्त्व भृष्ट) और ४ कुदसरण : कुदर्शन (अन्यमति) की वज्जरणाय : सगति (प्रशसा-परिचय) वर्जना सम्मत्त : ये चार कार्य सम्यक्त्व के सद्दहरणा ॥२॥ : श्रद्धान (दर्शक, उत्पादक व रक्षक) है। अतिचार पाठ इन सम्मत्तस्स • इस प्रकार श्री समकित रत्न पदार्थ के विषय मे
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy