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सूत्र-विभाग-६ 'प्रागमे तिविहे' निबध [ ३७ थोकड़ा की स्वाध्याय करूँगा। ....... .." समय ज्ञानियो की उपासना सेवा करूँगा।
___ सम्यग्ज्ञान निबंध १. सूक्त : १. पढ़म नाण-तम्रो दया' पहले सम्यग्ज्ञान होने पर ही पीछे सम्यक्चारित्र आ सकता है, पहले सम्यग्ज्ञान आने पर पीछे · सम्यक्चारित्र अवश्य आयेगा । -दशव० । २. जैसे सूत सहित -सूई गिर जाने पर भी नही गुमती है, वैसे ही सम्यग्ज्ञान आकर चले जाने पर भी जीव ससार मे भटकता नही है (एक दिन पुन. सम्यग्ज्ञान दर्शन व चारित्र प्राप्त कर मोक्ष मे चला जाता है)। -उत्तरा०। ३. ज्ञान अंधे के लिए आँख के समान और नेत्रवाले के लिए सूर्य-प्रकाश के समान है। -उतरा।
२. उद्देश्य : अज्ञान (ज्ञानाभाव और मिथ्याज्ञान) को नष्ट करके सम्यग्ज्ञान का उदय करना ।
३. स्थान : सभी दुखो का आदि मूल कारण अज्ञान है, अत: उसको नष्ट करना सबसे पहले आवश्यक है। इसलिए उसके नाशक सम्यग्ज्ञान को प्रथम स्थान दिया है। सूक्त मे दी गई ज्ञान की उपयोगिताओ के कारण भी ज्ञान को प्रथम स्थान दिया है।
४ फल : सम्यग्ज्ञान से नव तत्वो का ज्ञान होता है । १. जीव और २. अजीव तत्व के ज्ञान से आत्मा को अमर, देह को नश्वर, देह-प्रात्मा को पृथक् और देहात्म सयोग को दुःख का कारण समझ कर पुरुष जन्म, जरा, व्यांधि और मरणादि के दु.ख मे शान्त रहता है। ३. पुण्य तत्व के ज्ञान से पुण्य को