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सूत्र-विभाग-६ 'पागमे तिविहे' प्रश्नोत्तरी
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ज्ञान का दुरुपयोग होता है। कुगुरु से ज्ञान लेने मे स्वच्छ जल अशुद्ध पात्र से भर कर पीने के समान हानि होती है तथा द्वेप बुद्धि से ज्ञान न देने-लेने से सुगुरु और सुपात्र की प्राशातना होतो है। अत ये दोनो अतिचार त्याज्य हैं। इन अतिचारो को त्याग कर यथा शक्ति सुगुरु से शुद्ध भाव से ज्ञान लेना चाहिए तथा सुपात्र को यथा शक्ति शुद्ध भाव से ज्ञान देना चाहिए।
प्र० : अकाल स्वाध्याय किसे कहते हैं ?
उ० जिस काल में (चार सध्यारो मे) सूत्र स्वाध्याय नही करनी चाहिए या जो सूत्र जिस काल (दिन-रात्रि के दूसरे. तोसरे प्रहर में) नही पढ़ना चाहिए, उस काल मे स्वाध्याय करने को।
प्र० . अकाल स्वाध्याय और काल अस्वाध्याय से क्या हानि है ?
उ जैसे जो राग या रागिनी जिस काल में गाना चाहिए, उससे भिन्न काल मे गाने से अहित होता है, वैसे ही अकाल स्वाध्याय से अहित होता है तथा यथाकाल स्वाध्याय न करने से ज्ञान मे हानि तथा अव्यवस्थितता का दोष उत्पन्न होता है। इसलिए ये अतिचार भी वर्ण्य हैं। इन अतिचारो का वर्जन करके यथा समय व्यवस्थित रीति से स्वाध्याय करना चाहिए।
प्र० : अस्वाध्याय स्वाध्याय किसे कहते है ?
उ० मृतदेहादिक अशुचि के क्षेत्र मे तथा चन्द्रग्रहणादिक विषम समय मे स्वाध्याय करने को ।
प्र० . अस्वाध्याय मे स्वाध्याय और स्वाध्याय में अस्वाध्याय से क्या हानि है ?