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सूत्र-विभाग-६. 'प्रागमे तिविहे' प्रश्नोत्तरी [३३ अर्थ मे कमी रह जाती है। ४. कई बार अधिकता हो जाती है। ५ कई बार सत्य- किन्तु अप्रासगिक अर्थ हो जाता है। इस प्रकार कई हानियाँ हैं। जैसे 'ससार' मे से एक बिन्दु कम बोलने पर ससार' 'स-सार' (सार सहित) हो जाता है या 'शास्त्र' मे से एक मात्रा कम कर देने से- 'शास्त्र' 'शस्त्र' हो जाता है। अत उच्चारण अत्यन्त शुद्ध करना चाहिए।'
प्र० उच्चारण शुद्धि के लिए क्या करना चाहिए? । उ० उच्चारण शुद्धि के लिए" १ सूत्र के एक-एक अक्षर; मात्रादि को ध्यान से पढना चाहिए, २ ध्यान से कठस्थ करना चाहिए और ३ ध्यान से फेरना चाहिए। ऐसा करने से उच्चारण प्राय. शुद्ध होता है।
प्र. विनयहीन पढना किसे कहते हैं ?
उ० ज्ञान और ज्ञान-दाता के प्रति १. ज्ञान लेने से पहले, २ ज्ञान लेते समय 'तथा ३. ज्ञान लेने के पीछे विनय (वदनादि) न करके या सम्यग विनय न करके पढने को।
प्र० योगहीन पढना किसे कहते हैं ?
उ० १. मन लगाकर न पढने को, कायोत्सर्ग, २ अतिरात्रि आदि कारणो को छोडकर मन-मन मे पढने को, अनादरपूर्ण स्वर में पढने को व ३: काया को स्थिर न रखकर पढ़ने को।
प्र० घोषहीन पंढना किसे कहते हैं ? । उ० ज्ञानदाता जैसा मन्द स्वर, मध्यम स्वर, उच्च स्वर से उच्चारण करावें या जिस छन्द-पद्धति से उच्चारण करावें, वैसा उच्चारण करके नही पढने को।