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३२ ] सुवोध जन पाठमाला-माग २ सूत्र के अक्षर, मात्रा, व्यञ्जन, अनुस्वार, पद, पालापक आदि उलट-पलटकर पढने को।
प्र० : व्यत्यय करके पढना किसे कहते है ?
उ० . सूत्रो मे भिन्न-भिन्न स्थानो पर आये हुए पाठो को एक स्थान पर लाकर पढने को, विरामादि लिये बिना पढ़ने को, अथवा अपनी बुद्धि से सूत्र के समान सूत्र बनाकर आचारांगादि सूत्र में डालकर पढने को।
प्र० : हीनाक्षर पढना किसे कहते है ?
उ०: जैसे 'नमो आयरियाण' के स्थान पर 'य' अक्षर कम करके 'नमो पारियाण' पढने को।
प्र० : अति अक्षर पढना किसे कहते हैं ?
उ० : जैसे 'नमो उवज्झायारा' मे 'रि' मिलाकर 'नमो उज्झारियाण' पढा हो।
प्र० : पंदहीन (या अति करके) पढना किसे कहते हैं ?
उ० : जैसे 'नमो लोए सव साहरणं' में 'लोए पद कम करके 'नमो सव्व साहूणं' पढ़ने को।
प्र० • ये पांचो किसके अतिचार हैं ? उ०: उच्चारण सबधी अतिचार हैं ।
प्र० : उच्चारण की अशुद्धि से क्या हानि हैं ?
उ० : कई वार १. अर्थ सर्वथा नष्ट हो जाता है। कई बार २ विपरीत अथ हो जाता है। कई बार ३. आवश्यक