________________
२८ ] सुवोध जैन पाठमाला--भाग २ आपकी जितनी रुचि हो, जैसी योग्यता हो और जैसी परिस्थिति हो, उतना ही सही, परन्तु धर्म अवश्य स्वीकार करें।
इसके साथ ही कुछ बाते और लिख द-१. जो धमक वास्तविक उद्देश्य को लेकर चलते हैं, वे भी मोक्षप्राप्ति क मध्यकाल में पारलौकिक सूख भी अवश्य ही प्राप्त करते है तथा इहलोक मे भी प्राय उन्हे शान्ति उपलब्ध होती है। २ घन प्रारम्भ करते ही अज्ञान और राग-द्वेषजन्य दु ख मे तो तत्काल कमी आ जाती है, पर भौतिक सुख तत्काल उपलब्ध हाना नियमित नहीं है, क्योकि जितने भी भौतिक सुख हैं, उनका प्रति के पुरुषार्थ मे प्राय, पहले अपनी भौतिक सूख की पूंजी लगाना पडती है और कालान्तर मे कही अधिक भौतिक-सुख मिलता है । अत भौतिक सखदृष्टा को धर्म को धैर्य के साथ पालना श्रावश्यक है। ३. यह गाँठ वाँध रख लेना चाहिए किया इस मानव-भव मे धर्माराधन नही किया, तो अन्य भवो मे धम प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है। सम्पूर्ण चारित्र तो मानवभव से अन्य किसी योनि मे नही मिल सकता। देश चारित्र भा माग (और कुछ पश, जो प्राय पहले धर्म पाल चूके है, उन्हें छोडकर
का नही मिलता। सम्यग्ज्ञान व दर्शन भी सज्ञी पञ्चेन्द्रिय छोडकर अन्य को उपलब्ध नही होता। अतः धर्म में थाडा ना प्रमाद करना श्रेयस्कर नही है।
सूक्त-१. अहिंसा संयम और तप रूप धर्म हो श्रष्ठ मंगल है। जिसका मन भी धर्म मे सदा हा अनुरक्त रहता है, उसे (मनुष्य तो क्या) देव भी नमस्कार रत हैं। २. शुद्ध हृदय वाले प्राणी में ही धर्म स्थिर रहता
३. देह छोड़ दो, पर धर्म शासन को मत छोडो।