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सुवोध जन पाठमाला-भाग.२ शिला की शुद्धि करता है, वैसे हो प्रतिक्रमण करने से पहले चउवीसत्थव करके 'क्षेत्र-विशुद्धि' की जाती है।
प्र. निश्रा किसे कहते हैं ?
उ० · जिन्हे प्रतिक्रमण कठस्थ न हो, जो उसके भाव व विधि आदि को न जानते हो, वे, (जानते भी हो, तो भी) 'हमारे पाप निष्फल हो'-इस भावना को लेकर प्रतिक्रमण करने वाला 'जो कुछ शब्दोच्चारण करे, वह हमारे लिए भी हो।' इस आशय से प्रतिक्रमण करने वाले का आश्रय ग्रहण करे, उसे निश्रा कहते हैं ।
प्र० श्रावक के देश-चारित्र को चारित्राचारित्र क्यो कहते हैं ?
उ० वह कुछ चारित्र ग्रहण करता है, और कुछ नही-- इसलिए।
प्र० . पालोचना किसे कहते है ?
उ० 'मेरे धर्म मे कोई अतिचार लगा या नहीं? यदि लगा हो, तो उसे दूर करूँ।' इस विचार से १. अपने अतिचारो को, २. शुद्ध भाव से, ३ सम्यक्तया (धीरे-धीरे गहराई पूर्वक) देखने को यहाँ 'पालोचना' कहा है
प्र० : अतिचार किसे कहते है ?
उ० : धर्म मे कुछ दोष लगाने को। १. दर्प (विना कारण जान-बूझकर व्रत तोडने की बुद्धि) से, २. प्रमाद (जत के प्रति अनादर, अविवेक, विषय-भोग मे रुचि आदि) से तथा ३. प्रद्वेष (कपाय की तीव्रता) से धर्म मे कुछ दोष लगाना तीव्र पतिचार है और पूरा दोष लगा देना अनाचार है।