________________
तत्त्व-विभाग-पांच समिति तीन गुप्ति का स्तोक [ २५६
६. पामिच्चे (प्रामृत्य) : साधु के लिए उधार लिया हुआ आहार आदि लेना।
१०. परियट्टिए (परिवर्तित): साधु के लिए (कोई वस्तु देकर उसके ) बदले मे लिया हुआ आहार आदि लेना।
'कीतादि' इन तीनो आहारो को लेने से भविष्य मे उस दाता की तथा अन्य दाता की दान भावना मन्द पड़ सकती है और साधू की लालसर तीव्र हो सकती है, इसलिए ये तीनों आहार सदोष हैं।
११. अभिहडे (अभिहत): साधु के लिए तीन घर से अधिक अतर से (दूरी से) सामने लाया हुअर आहार नादि लेना।
"पाहार कहाँ से लाया जा रहा है ?' यदि यह दिखाई न देता हो, तो तीन घर की दूरी से भी आहार लेना वयं है।
'इस अभिहत' आहार मे भो अनन्तर उक्त दोष सभव है तथा 'साधु के लिए गृहस्थ-मार्ग मे अयतना से चले' यह दोष भी सभव है; अतः यह आहार सदोष है ।
१२. उन्भिन्ने (उद्धिन्न) : लेपन ढक्कन आदि अयत्तना से खोल कर दिया हया (या पोछे जिसका लेपन ढक्कन आदि अयतना से लगाया जाय, वैसा) आहार आदि लेना।
पृथ्वीकाय आदि की विराधना के कारण, यह अाहार सदोष है।
१३. मालोहडे (मालापहृत): ऊँचे माले आदि विषम स्थान से कठिनता से निकाला हा आहार आदि लेना।
ऐसा 'मालापहृत' आहार देता हुआ दाता कभी गिर कर