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२६० ] सुबोध जैन पाठमाला-भाग २ अपग हो सकता है, तथा उसके गिरने से त्रस-स्थावर जीवो की विराधना हो सकती है; अतः यह आहार सदोष है ।
१४. अच्छिज्जे (आच्छेद्य) : साधु के लिए निर्बल से छीना हुमा आहार आदि लेना।
निर्बल को दुःख पहुँचने के कारण यह आहार सदोष है।
१५. परिणसिट्ठे (अनिःसृष्ठ) : जिस आहार आदि के अनेक स्वामी हो, उसके अन्य स्वामियो की स्वीकृति न हुई हो, या उसका बंटवारा न हुमा हो, ऐसी दशा मे उस आहार आदि को लेना।
अन्य स्वामियो की चोरी के कारण यह पाहार सदोष है।
१६. अझोयरए (अध्यवपूरक) : पहले बनते हुए जिस आहारादि मे, साधुओ के लिए नई सामग्री मिलाई हो (ऊरी हो), वैसा आहार आदि लेना।
यह 'अध्यवपूरक' आहार भी आधाकर्मादि के समान प्रारभ वाला होने से सदोष है।
उत्पादना के १६ सोलह दोष की मूल गाथाएँ धाई दुई निमित्ते आजीव वरणीमगे५ तिगिच्छाय। - कोहे" मारणे माया, लोभे१० य हवंति दस एए॥ पुच्विं-पच्छा-संथव११, विल्ला१२ मंत'३ चण्ण'४ जोगे'५ य । उप्पायरणाई दोसा, सोलसमे मूलकम्मे१६ य॥ धात्री' दूति२ निमित्त, आजीव वनीपक चिकित्सा च । क्रोध' मान,८ माया, , लोभ'' ये सब हुए दश ॥१॥ पहले पीछे सस्तव'१, विद्या मत्र १३ चूर्ण१४ योग१५ च । सोलहवा मूलकर्म१६ ये सब है उत्पादना दोष ।।२।।