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२५६ 1 सुबोध जैन पाठमाला भाग-२ मनुष्य, मूर्ख को भी पण्डित कह देता है। ६ भय में, मनुष्य अकार्य करके भी कह देता है कि-'मैंने वह अकार्य नही किया।' ७. मौखर्य मे मनुष्ये, सत्पुरुषो की भी निन्दा कर देता है। ८. विकथा मे मनुष्य, कुरूप स्त्री को भी अद्वितीय सुन्दरी कह देता है। इसलिए तीर्थंकरो ने भाषा समिति मे इन क्रोधादि आठ वोलो का निषेध किया है।
तीसरी एषणा समिति का स्वरूप एषरणा समिति : विवेकपूर्वक आहार लाना तथा करना अर्थात् किसी जीव की विराधना न हो और आधा-कर्म प्रादि ४७ दोषो मे कोई दोष न लगे, इसका उपयोग रखकर आहार लाना तथा करना।
एषरणा समिति के चार भेद-१ द्रव्य २ क्षेत्र ३ काल और ४ भाव। १ द्रव्य से-उद्गम के सोलह दोष, उत्पादन के सोलह दोष और एषणा के दस दोष, यो बयालीस (१६+ १६+१० = ४२) दोषो को टालकर १. आहार २. उपधि (वस्त्र) :. शय्या (वसति) और ४. पात्र प्रादि की गवेषणा करें। २. क्षेत्र से-दो कोस के उपरान्त ले जाकर (या लाया हुआ) प्रशनादि न भोगे । ३. काल से प्रथम प्रहर मे लाया हुआ प्रशनादि चौथे प्रहर मे न भोगे। अाहार को अधिक क्षेत्र तक तथा अधिक काल तक अपने पास रखने से और भोगने से साधु मे १ आहार के प्रति परिग्रह वृत्ति और २ देह के प्रति ममता वढती है तथा आहार को अधिक क्षेत्र तक ले जाने मे और अधिक काल तक रक्षण करने मे ३ ज्ञान दर्शन चारित्र की पाराधना में मन्दता आती है। इत्यादि कारणो से तीर्थकरो ने आहार को दो कोस उपरात ले जाकर तथा