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२५० ] सुबोध जैन पाठमाला-भाग २
३ परिहार विशुद्ध चारित्र-जिसमे परिहार नामक तप करके आत्मा को विशेष शुद्ध बनाई जाती है, ऐसा चारित्र ।
४. सूक्ष्म संपराय चारित्र-जहाँ केवल सूक्ष्म लोभ ही उदय मे रहता है, ऐसे दशवे गुणस्थान में होने वाला चारित्र।
५. यथा-ख्यात चारित्र-जहाँ मोहनीय कर्म उपशात या क्षीण हो जाता है, ऐसे ग्यारहवे से १४ वे गुणस्थान , . तक मे होने वाला चारित्र ।
अर्थ, भावार्थ और प्रासंगिक टिप्परण सहित
पच्चीस बोल का स्तोक समाप्त