SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * रणमो गारणस्त # ५ समिति ३ गुप्ति का स्तोक (थोकड़ा) सार्थ श्री उत्तराध्ययन सूत्र के २४ चौबीसव अध्ययन मे पाँच समिति-तीन गुप्ति का अधिकार चला है। उस प्राधार से पांच समिति-तीन गुप्ति का स्तोक कहते हैं। __ पांच समिति के नाम-१. ईर्या समिति २. भाषा समिति ३. एषणा समिति ४. आदान-भाण्ड मात्र-निक्षेपणा समिति, ५. उच्चार-प्रश्रवण, खेल-सिंघारण-जल-परिस्थापनिका । समिति । तीन गुप्ति के नाम-१. मनो गुप्ति, २. वचन गुप्ति, ३. काय गुप्ति । ___ इन पांच समिति-तीन गुप्सि को 'प्रवचन माता' बताई गई है। क्योकि इन के पालन के उपदेश के लिए ही 'द्वादशागी वाणी' (या 'चौदह पूर्व') तीर्थंकरो ने प्रकट की है। कही पांच समिति-तीन गुप्ति को 'द्वादशांगी वाणी' (या चौदह पूर्वो) का सार वताया गया है। क्योकि द्वादशाग (या चौदह पूर्वो के ज्ञान का फल यही है कि 'जीव' पाँच समिति-तीन गुप्ति का पूर्णतया सम्यक् पालन करे। भूतकाल मे अनन्त भव्य जीव द्वादशागी मे से केवल पांच समिति-तीत गुप्ति ही जानकर तथा उसकी पूर्णतया सम्यक् पालना
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy