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तत्त्व-विभाग-पच्चीसवाँ बोल : 'पाँच चारित्र' [२४६
एक करण एक योग से भंग ६, एक करण दो योग से भग ६, एक करण तीन योग से भंग तीन, दो करण एक योग से भग ९, वो करण दो योग से भंग ९, दो करण तीन योग से भंग ३, तीन करण एक योग से भंग ३, तीन करण दो योग से भग तीन, तीन करण तीन योग से भग १-यों सब भग ४६ हुए। (E+६+३+ &+8+३+३+३+१%=४६)
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२५ वाँ बोल : 'पाँच चारित्र' चारित्र-१. चारित्र-मोहनीय कर्म के क्षय, उपशम या क्षयोपशम से होने वाला विरति परिणाम २ सम्पूर्ण सावद्ययोगो का (= अट्ठारह पापो का) प्रत्याख्यान ३. जिससे कर्म आते रुके ४ कही-कहीं जिससे सचित कर्मों का क्षय हो, उसे भी चारित्र माना गया है।
१. सामायिक चारित्र चार महानत (१ सर्व प्राणातिपात विरमण २ सर्व मृषावाद विरमण ३ सर्व अदत्तादान विरमरण ४ सर्व बहिद्धा-दान विरमण) वाला चारित्र ।
२. छेदोपस्थापनीय चारित्र-जिसमे पहले की चार महाव्रत वाली दीक्षा पर्याय छेदकर (काट कर) पाँच महावत वाली दीक्षा दी जाती है, ऐसर चारित्र ।