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२४२ ] सुबोध जन पाठमाला--भाग २ खूटी को भीत स्थान देने में सहायक है; वैसे ही धर्मास्तिकायादि पाचो द्रव्यो को, आकाशास्तिकाय स्थान देने में सहायक है।
४. काल के पाँच भेद १ द्रव्य से-अनंत द्रव्य। २. क्षेत्र से पढ़ाई द्वीप प्रमारण। ३. काल से -- आदि अंत रहित। ४. भाव से-वर्ण रहित, गंध रहित, रस रहित और स्पर्श रहित अर्थात् अरूपी है अप्रदेशी है। ५. गुरण से-वर्तना गुग (लक्षण से-नई को जूनी बनावे, जूनी को नई बनावे) कपड़े को कैची का दृष्टान्त । जैसेपरिवर्तन पाते हुए कपडे को कैची परिवर्तन मे सहायक है, वैसे ही धर्मास्तिकायादि पाँचो द्रव्यो के परिवर्तन मे, काल सहायक है । प्रदेश रहित होने से काल अस्तिकाय नही है।
५. जीवास्तिकाय के पाँच भेद अर्थात् जीवास्तिकाय पाच बोलों से जाना जाता है। १. द्रव्य से--अनंत जीव द्रव्य । २ क्षेत्र से सम्पूर्ण लोक प्रमारण। ३. काल से--प्रादि अन्त रहित । ४ भाव से-वरण रहित, गंध रहित, रस रहित, और स्पर्श रहित, अर्थात् अरूपी है और अनत प्रदेशी है। ५. गुरण से-उपयोग गुरा (लक्षण से चेतना गुण)। चन्द्रमा की कला का दृष्टान्त । जैसे-आवरण के कारण चन्द्रमा न्यूनाधिक प्रकाशित होता है, वैसे ही ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय के कारण प्रात्मा का उपयोग (चेतना) गुण न्यूनाधिक प्रकट होता है ।
६. पुद्गलास्तिकाय के पाँच मेद अर्थात् पुद्गलास्तिकाय पाच वोलो से जाना जाता है ! १ द्रव्य से-अनन्त द्रव्य । २. क्षेत्र से सम्पूर्ण लोकप्रमाण ।