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तत्व-विभाग-बीसवाँ बोल : '६ द्रव्य के ३० भेद' २४१
१ धर्मास्तिकाय के पांच भेद अर्थात् धर्मास्तिकाय पाँच बोलों से (= द्वारो से) जाना जाता है। १ द्रव्य से-एक द्रव्य । २. क्षेत्र से -सम्पूर्ण लोक प्रमारण। ३ काल से-प्रादि अंत रहित। ४ भाव से-- वर्ण रहित, गन्ध रहित, रस रहित और स्पर्श रहित, अर्थात् अरूपी है और असख्य प्रदेशी है। ५. गुरण से गति गुरण (लक्षण से चलन गुरण) पानी में मछली का दृष्टान्त । जैसे--गति करती हुई मछली को पानी, गति करने में सहायक है, वैसे ही गति करते हुए जीव तया पुद्गलों को, धर्मास्तिकाय गति मे सहायक है।
२. अधर्मास्तिकाय के पाँच भेद अर्थात् अधर्मास्तिकाय पाँच बोलो से ( = पाँच द्वारो से) जाना जाता है। १. द्रव्य से~-एक द्रव्य। २. क्षेत्र से सम्पूर्ण लोक प्रमारण। ३. काल से -प्रादि अंत रहित। ४. भाव सेवर्ण रहित, गंध रहित, रस रहित और स्पर्श रहित अर्थात् अरूपी है और असख्य प्रदेशी है। ५ गुण से - स्थिति गुरण (लक्षण से स्थिर गुण) पथिक को छाया का दृष्टान्त। जैसे ठहरते हुए पथिक को छाया ठहरने में सहायक है, वैसे ही स्थित्ति करते हुए जीव तथा पुदलो को, अधर्मास्तिकाय स्थिति में सहायक है।
३. आकाशास्तिकाय के पाँच भेद अर्थात् अाकाशास्तिकाय पाँच बोलो से जाना जाता है। १. द्रव्य से-एक द्रव्य । २ क्षेत्र से-लोकालोक प्रमाण । ३. काल से-प्रादि अंत रहित। ४. भाव से-वर्ण रहित, गंध रहित, रस रहित और स्पर्श रहित अर्थात् अरूपी है और अनंत प्रदेशी हैं। ५. गुरण से--(लक्षण से) स्थान देने का गुरण, भौंत मे खंटी का ट्रान्त। जैसे-भीत मे स्थान बनाती हुई