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२४० ] सुबोध जैन पाठमाला--भाग २
६. शुक्ललेश्या : दूध के समान श्वेत वर्णवाली लेश्या। शुक्ल लेश्या वाला, शुक्ल ध्यान ध्याने वाला, प्रशातचित्त, आत्मा का दमन करने वाला और वीतराग होता है।
छहलेश्या का दृष्टान्त __ यदि जामुन वृक्ष के फल खाने की इच्छा हो, तो कृष्णलेश्या वाला वृक्ष की जड़ काट कर खाना चाहेगा। नीललेश्या वाला बडी-बडी शाखाएँ काटकर खाना चाहेगा । कापोतलेश्या वाला छोटी-छटी शाखाएँ काट कर खाना चाहेगा। तेजोलेश्या वाला फलो के गुच्छे तोडकर खाना चाहेगा। पद्मलेश्या वाला गुच्छो से फल तोड कर खाना चाहेगा। शुक्ललेश्या वाला धरती पर पडे फल खाकर ही सतोष करेगा।
इन छह लेश्यानों में पहले की तीन अशुभ व अधर्म लेश्याएँ हैं । इन लेश्यानो मे अशुभ गति का बघ पडता है और मरते समय इन लेश्याओं के आने पर जीव अशुभ गति मे जाता है। छह लेश्यानो मे पिछली तीन लेश्याएं शुभ द धर्म लेश्याएं है। इन लेश्यानो मे शुभगति का वय पडता है और मरते समय इन लेश्याप्रो के आने पर जीव शुभ गति मे जाता है ।
एकेन्द्रिय, भवनपति व वान व्यन्तर मे पहले की चार लेश्याएँ पाती हैं। विकलेन्द्रिय मे पहले की तीन पाती हैं। ज्योतिष में तेजोलेश्ण मिलती है। वैमानिक मे पिछली तीन मिलतीहैं । तिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रिय तथा मनुष्य में छहो मिलती हैं ।
बीसवाँ बोल : 'षट् (छह) द्रव्यके ३० भेद'
द्रव्य : १. भूत भविष्य वर्त्तमान-तीनो काल मे रहने रहने वाला २. गुणो और पर्यायो का आधार ।