SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्व-विभाग-सत्रहवां बोल : 'छह लेश्या' [२३९ १. कृष्णलेश्या : काजल के समान काले वर्ण वाली लेश्या। कृष्णलेश्यावाला, हिंसा झूठ आदि पाँच पाश्रवो मे सदा लगा रहने वाला, मन वचन काया और पाँचो इन्द्रियो को विषयविकारो मे फंसाये रखने वाला, निर्दय होकर छह कायो की तीनपरिणाम से हिंसा करने वाला, सबका शत्रु, गुण-दोष बिचारे बिना काम करने वाला और इस भव, परभव मे लगने वाले दुष्कर्मों के फल से न डरने वाला होता है। २. नीललेश्या : नीलमणि के समान नोले वर्ण वाली लेश्या। नीललेश्या वाला, दूसरो के गुणो को सहन न करने वाला कदाग्रही, तप-रहित, कुविचार और कुआचार वाला, पापो मे निर्लज्ज और गृद्ध, तथा सद्वोध देने पर द्वष करने वाला और झूठ बोलने वाला होता है । ३ कापोतलेश्या : कबूतर के समान भूरे वर्ण वाली लेश्या। कापोतलेश्या वाला, विचारने, बोलने और काम करने मे बांका, बनावटी बाते आदि बनाकर अपने दोषो को ढकने वाला, द्वेषपूर्ण कठोर वचन बोलने वाला और दूसरो की उन्नति न सहने वाला होता है। ४. तेजोलेश्या : अग्नि के समान लाल वर्ण वाली लेश्या। तेजोलेश्या वाला, अभिमान, चपलता, असत्य भाषण और कौतुहल रहिन, विनय करने वाला, पाँच इन्द्रियो और तीनो योगो को वश मे रखने वाला, तपस्वी, प्रियधर्मा, दृढधर्मा, पाप से भय खाने वाला और मोक्ष चाहने वाला होता है। ५. पालेश्या : हल्दी के समान पीले वर्ण वाली लेश्या । पद्मलेश्या वाला, थोडी कषाय वाला, इन्द्रियो और योगो को वश मे रखने वाला, तपस्वी और थोडा बोलने वाला होता है।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy