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२३८ ] सुबोध जैन पाठमाला-भाग २
१२-१६. पांच स्थावरो के पांच दण्डक । पाँच स्थावरों के नाम-१. पृथ्वीकाय, २. अप्काय, ३. तेजस्काय, ४. वायुकाय, ५. वनस्पतिकाय ।
१७-१६. तीन विकलेन्द्रिय के तीन दण्डक। तीन विकलेन्द्रियो के नाम-१. द्वीन्द्रिय, २. त्रीन्द्रिय, ३. चतुरिन्द्रिय ।
२०. तिर्यश्च पञ्चेन्द्रिय का एक दण्डक। २१. मनुष्य का एक दण्डक । २२. वान व्यन्तर देवता का एक दण्डक । २३. ज्योतिषी देवता का एक दण्डक । २४. वैमानिक देवता का एक दण्डक । इस प्रकार चौवीस दण्डक हुए। (१+१०+ ५+३+१+१+१+१+१=२४)
नारक : नरकगति वाले जीव, जो अधोलोक मे 'नरक' नामक स्थान मे रहते हैं।
भवनपति : अधोलोक के भवन नामक स्थान मे रहने वाले देवता, जो सदा कुमारी के समान कातिमान और क्रीड़ा मे तल्लीन रहते है।
विकलेन्द्रिय : जिनको पाँचो इन्द्रियां पूरी न मिली हो । कही-कही एकेन्द्रिय को भी विकलेन्द्रिय माना गया है।
तिर्यश्च पञ्चेन्द्रिय : तिर्यञ्च गति वाले ऐसे जीव, जिन्हे पाँचो इन्द्रियां पूरी मिली हो। जैसे--मछली, पशु, पक्षी, सर्प, नोलिया।
‘सत्रहवाँ बोल : 'छह लेश्या' लेश्या : १. मन, वचन, काया रूप योग के अन्तर्गत कषायो को उभारने वाला द्रव्य विशेष २. आत्मा पर कर्मों को चिपकाने वाली।