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तत्त्व-विभाग-सोलहवां बोल : 'चौवीस दण्डक' [२३७
८. वीर्य प्रात्मा : उत्थान (= कार्य करने के लिए उठ खडा होना) अादि रूप, 'वीर्य विशिष्ट आत्मा।
पहले और तीसरे गुणस्थान मे ज्ञानात्मा और चारित्रात्मा छोडकर छह प्रात्माएं, दूसरे, चौथे और पांचवें गुणस्थान मे ज्ञानात्मा मिलाकर सात प्रात्माएँ तथा छठे गुणस्थान से दशवें गुरणस्थान तक चारित्रात्मा मिलाकर पाठो ही प्रात्माएँ होती हैं। ग्यारहवें, बारहवें, और तेरहवें मे कषायात्मा छोडकर सात प्रात्माएं. चौदहवें मे योगात्मा भी छोडकर छह प्रात्माएं तथा सिद्धो मे चारित्रात्मा और वीर्यात्मा भी छोडकर शेष चार प्रात्माएँ होती हैं ।
सोलहवाँ बोल : 'चौवीस दण्डक'
दण्डक : १ व्याख्या करके समझाने के लिए विषय के बनाये गये विभाग। २. अपने किये गये कर्मों का जहाँ दण्ड भोगा जाता है, वे स्थान ।
१. सात नारक का एक दण्डक। सात नरक के नाम१ घर्मा (धम्मा), २ वंशा, ३. शैला, ४. अञ्जना, ५. रिष्टा (रिट्ठा), ६. मघा, ७. माघवती। सात नरक के गोत्र (गुणयुक्त नाम) १. रत्नप्रभा, २. शर्करा प्रभा, ३. वालुका प्रभा, ४. पक प्रभा, ५. धूम प्रभा, ६. तमःप्रभा, ७ तमः तम. प्रभा (महातमः प्रभा)।
२-११. दश भवन पतियो के दश दण्डक। दश भवन पतियो के नाम-१. असुरकुमार, २. नागकुमार, ३. सुवर्णकुमार, ४. विद्युत्कुमार, ५. अग्निकुमार, ६. द्वीपकुमार, ७. उदधिकुमार, ८. विशाकुमार, ६. पवनकुमार, १०. स्तनितकुमार।