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________________ सुवोध जैन पाठमाला भाग-२ ८. ससार के मार्ग को मोक्ष का मार्ग श्रद्धे तो मिथ्यात्व : मिथ्याश्रुत, मिथ्यावृष्टि, अन्नत और बाल तप को या प्राश्रव-बन्ध को मोक्ष का मार्ग माने, तो मिथ्यात्व लगता है। ९ मुक्त को अमुक्त श्रद्धे तो मिथ्यात्व : अरिहन्त-सिद्ध को कर्ममुक्त सुदेव न माने या मोक्ष तत्व को न माने, तो मिथ्यात्व लगता है। १०. अमुक्त को मुक्त श्रद्धे तो मिथ्यात्व : कुदेवो को सुदेव माने, मोक्ष से पुनरागमन या अवतार माने तो, मिथ्यात्व लगता है। पन्द्रहवाँ बोल : 'पाठ आत्मा' आत्मा : १ ज्ञानादि पर्यायो मे सतत गमन करने वाला। २ जीव, चैतन्य, प्राणी। १. द्रव्यात्मा : भूत, भविष्यत् वर्तमान-तीनो कालवर्ती असख्य प्रदेशी, द्रव्य रूप आत्मा। २. कषायात्मा : क्रोध, मान, माया, लोभ रूप, 'कषाय विशिष्ट' आत्मा। ३. योगात्मा : मन, वचन, काया रूप, 'योग विशिष्ट' अात्मा। ४. उपयोगात्मा : साकार (=पाँच ज्ञान तीन अज्ञान), अनाकार (=चार दर्शन) रूप, 'उपयोग विशिष्ट' प्रात्मा। ५. ज्ञानात्मा : मतिज्ञानादि रूप; 'ज्ञान विशिष्ट' आत्मा। ६. दर्शनात्मा : चक्षुदर्शनादि रूप , 'दर्शन विशिष्ट' आत्मा। ७. चारित्रात्मा : सामायिक चारित्र आदि रूप, 'चारित्र विशिष्ट' आत्मा।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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