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तत्त्व-विभाग-तेरहवां बोल : 'दश मिथ्यात्व'
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१३ वॉ बोल : 'दश मिथ्यात्व' मिथ्यात्व : देव, गुरु, धर्म के सम्बन्ध मे सम्यक्प्रद्धा का प्रभाव।
१. जीव को अजीव श्रद्धे तो मिथ्यात्व . जीव तत्व न माने या जड से उत्पन्न माने, या स्थावर जीव न माने, तो मिथ्यात्व लगता है।
२. अजीव को जीच श्रद्धे तो मिथ्यात्व : विश्व को भगवद्रूप माने, सूर्यादि को, मूर्ति-चिनादि को भगवान माने, तो मिथ्यात्व लगता है।
_धर्म को अधर्स श्रद्धे तो मिथ्यात्व : जैन धर्म को धर्म, अर्थात् केवलो भाषित शास्त्र को सुशास्त्र न माने तो, मिथ्यात्व लगता है।
४. अधर्म को धर्म श्रद्धे तो मिथ्यात्व : अन्य धर्मों को धर्म अर्थात् अज्ञानी भाषित शास्त्र को सुशास्त्र माने, तो मिथ्यात्व लगता है।
५. साधु को असाधु श्रद्धे तो मिथ्यात्व : ५ महाव्रत, ५. समिति ३ गुप्ति धारी साधु को सुसाधु न माने तो, मिथ्यात्व लगाता है।
६. असाधु को साधु श्रद्धे तो मिथ्यात्व : महावतादि रहित, स्त्री परिग्रह सहित, असाधु को साधु माने तो, मिथ्यात्व लगता है।
७ मोक्ष के मार्ग को ससार का मार्ग श्रद्धे तो मिथ्यात्व : सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप को या सवर-निर्जरा को या दान शील तप भाव को ससार का मार्ग माने तो मिथ्यात्व लगता है।