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तत्त्व-विभाग-इक्कीसवाँ बोल : 'दो राशि' २४३ ३. काल से-पादि अन्त रहित । ४. भाव से-वर्णवान्, गंधवान्, रसवान् और स्पर्शवान् है, अर्थात् रूपी है और अनन्त प्रदेशी है। ५. गुग से-पूरण गलन गुरण (सयोग वियोग लक्षण) बादल का दृष्टान्त । जैसे-बादल मिलते-बिखरते है, उसी प्रकार पुद्गल मिलते-बिखरते हैं।
इक्कीसवाँ बोल : 'दो राशि राशि : ढेर, समूह, वर्ग, पुञ्ज १ जीव राशि और २. अजीव राशि
जीवराशि के ५६३ भेद नारक : के चौदह । सात्त के अपर्याप्त और सात के पर्यास (७४२%=१४)।
तिर्यञ्च : के अड़तालीस । जिसमे एकेन्द्रिय के बावीसपृथ्वीकाय के चार-१ सूक्ष्म पृथ्वीकाय और २ बादर पृथ्वीकाय, दो के अपर्याप्त और दो के पर्याप्त (२x२=४) । इसी प्रकार अप्काय के चार ४, तेजस्काय के चार ४ और वायुकाय के चार ४, वनस्पत्तिकाय के छह-१. सूक्ष्म २. साधारण और ३. प्रत्येक, तीन के अपर्याप्त और तीन के पर्याप्त (३४२-६) चिकलेन्द्रिय के छह-१. द्वीन्द्रिय २. त्रीन्द्रिय ३. चतुरिन्द्रिय, तीन के अपर्यास और तीन के पर्याप्त । (३४२-६)। पञ्चेन्द्रिय के बीस-१ जलचर २ स्थलचर ३ खेचर ४. उर. परिसर्प और ५. भुज परिसर्प, पांच के सज्ञी और पाँच के असज्ञी दश (५४२-१०)-दश के अपर्याप्त और दश के पर्याप्त, वीस (१०४२-२०) ये तिर्यञ्च के अडतालीस (२२+६+२०=४८)।