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२२८ ] सुबोध जैन पाठमाला--भाग २ के समान अत्यन्त स्वच्छ उत्तम पुद्गलो से बना और मूंड हाथ से लेकर एक हाथ तक की अवगाहना वाला शरीर ।
४. तेजस शरीर : १. 'आहार को पचाने वाला व शरीर मे उष्णता रखने वाला शरीर २. तेजोलब्धि से तेजोलेश्या निकालने मे कारणभूत शरीर।
५. कार्मण शरीर : १. आत्मा के साथ बँधे हुए कर्मो से बना हुआ कर्म-रूप शरीर, २. पचे हुए भोजन के रसादि को यथां स्थान पहुँचाने वाला शरीर ।
___ इनमे से 'औदारिक शरीर' सभी तिर्यश्च व मनुष्यों को होता है। 'वैक्यि शरीर' सभी नरक देवो को होता है, कुछ तिर्यञ्चो व मनुष्यो को भी होता है। 'पाहारक शरीर' मात्र चौदह पूर्व धारी पुरुष साधु मनुष्यों को ही होता है। और 'तेजस' तथा 'कार्मरण' शरीर सभी ससारी जीवों को अनादिकाल से होता है ।
पाठवाँ बोल : 'पन्द्रह योग' मन के चार, वचन के चार, काया के सात । योग १५ ।
योग : १. मन वचन और काया। २. मन वचन और काया का व्यापार (-प्रवृत्ति)। ३. मन वचन और काया के व्यापार से आत्मा मे होने वाला परिस्पन्दन (हलन चलन, कम्पन) विशेष।
मन के चार योग १. सत्य मनोयोग : १. जीवादि नव तत्वों के या जीवादि छह द्रव्यो के विषय में सत्य (=यथार्थ) विचार करना।