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तत्त्व विभाग-साता चोल • 'पाँच शरीर' । २२७ बल-प्रारस मिलाकर छह, त्रीन्द्रिय को प्रारपेन्द्रिय बलप्राण मिलाकर सात, चतुरिन्द्रिय को चक्षुरिन्द्रिय बल प्रारण मिलाकर पाठ असंही पञ्चेन्द्रिय को श्रोत्रेन्द्रिय बल-प्राण मिलाफर नव, तथा संज्ञरे पचेन्द्रिय को मनोवल-प्रारण मिलाकर दश 'घले-प्राण' होते हैं।
सातवाँ बोल : 'पाँच शरोर'
शरीर : उत्त्पत्ति समय से ही प्रतिक्षरण जीर्णशीर्ण होने वाला।
१. प्रौदारिक शरीर : १. दुर्गंधमय तथा सडने वाले रक्त, मास, हड्डी आदि से बना शरीर। २ सर्वश्रेष्ठ सार पुद्गलो से बना उदार (उत्तम) शरीर, जैसे-तीर्थंकरो का शरीर, गणधरो का शरीर । ३ वैक्रिय और आहारक की अपेक्षा असार पुद्गली से बना शरीर, जसे-सामान्य तिर्यञ्च-मनुष्यो का शरीर। ४. अवस्थित रूप से सबसे बडी अवगाहना (कद, लम्बाई, चौडाई ऊँचाई) वाला उदार-(मोटा) शरीर; जैसे वनस्पति का शरीर । ५. 'प्रदेश अल्प किन्तु अवगाहना बड़ी' ऐसर शरीर, जैसे भिण्डी का शरीर।
२. वैक्रिय शरीर । १. सुरूप, कुरूप, एक, अनेक, छोटा, बडा, हल्का, भारी, दृश्य, अदृश्य प्रादि अनेक रूपो मे परिणत होने वाला (बदलने वाला) शरीर। २. दुर्गंधमय तथा सड़ने वाले रक्त, मास, हड्डी आदि से रहित शरीर ।
३. प्राहारक शरीर : १. अन्यत्र विराजमान केवली भगवान् की सेवा मे भेज कर प्रश्न पूछने के लिए या उनका भतिशय देखने के लिए बनाया जाने वाला या प्राणी-रक्षा तथा ऐसे ही अन्य प्रयोजनो से बनाया जाने वाला शरीर ३ स्फटिक