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सूत्र-विभाग - ३६. दश प्रत्याख्यानो के पृथक्-पृथक् पाठ [ २२१
पच्चक्खामि ।
: तीन या चारो आहार का 'एकाशन' या 'एकस्थान' सहित त्याग करता हूँ ।
१. अन्नत्थरणा भोगेणं २. सहसागारेग ३. लेवा-लेवेण ( लेपालेप)
४. उक्त्ति - विवेगेरणं ( उत्क्षिप्त - विवेक)
५ गिहत्य-ससट्ट गं (गृहस्थ- ससृष्ट)
निव्विगइयं ( निविकृतिक )
: पात्र, कुडछी, हाथ आदि, जो पहले लेप युक्त थे, उन्हे निर्लेप करते हुए भी उनमे कुछ लेप रह जाय, ऐसे अल्प लेप वाले पात्रादि से दिया हुआ आहार करू
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: गुडादि के ऊपर या नीचे रक्खी रोटी आदि को गुडादि से भिन्न करके दे, उसमे गुड आदि का अल्प लेप रह जाय, वह ग्रहार करूँ
६. पारिट्ठावरिया - गारेणं ७. महत्तरागारेणं ८. सव्वसमाहि-वत्तिया - गारेण । वोसिरामि ।
७. 'निर्विकृतिक' का प्रत्याख्यान पाठ
: गृहस्थ ने आहार बनाने के पहले या पीछे जिस आहार मे नमक आदि मिला दिया हो, या अति अल्प मात्रा मे विगय लगा दी हो, वह ग्राहार करूँ, तो श्रागार तथा
: १ पिण्ड या धार की या २. अवगाहिम ( कडाई) की पाचो विगय रहित या इच्छित विगय रहित एक बार भोजन उपरात