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________________ २२० ] ( परिस्थापनिकाकार) सुवोध जैन पाठमाला- -भाग २ ७. महत्तरागारेणं वोसिरामि । परठने की विराधना को टालने के लिए उसे भोगना पडे, तो आगार तथा ८. सव्व-समाहि-वत्तिया-गारेणं । ५. 'एकस्थान' का प्रत्याख्यान पाठ एक्कासरणं ( एकाशन ) : भोजन के लिए हाथ और मुंह जितना एगट्ठा (एकस्थान) हिलता है, उसके अतिरिक्त अन्य अगो को हिलाये बिना एक वार भोजन उपरात पच्चक्खामि । तिविह पि श्राहारं - १. श्रसरणं २ साइमं ३. साइमं । ( अथवा ) चउव्विहं पि श्राहारं - १. असणं २. पा ३. खाइमं ४ साइमं । १. अन्नत्थरणा - भोगेणं, २. सहसागारेणं ३. सागारिया - गारेण, ४. गुरु- श्रब्भुट्ठाण, ५. पारिट्ठावलियागारेणं, ६. महत्तरागारेणं, ७ सव्वसमाहि-वत्तिया-गारेां । वोसिरामि । श्रायंविलं ( आचाम्ल) 'एकाशन' और 'एक-स्थान' का प्रत्याख्यान पाठ प्रायः समान है। भोजन के समय अगो के सिकोडने पसारने का आगार 'एकाशन' मे है और 'एक-स्थान' मे नही ।' यही दोनो प्रत्याख्यानो मे अन्तर है । ६. 'आयंबिल' का प्रत्याख्यान पाठ : लवरण- मिर्च यादि सस्कार तथा दूध आदि विगय रहित, एक चित्त धान्य का एक वार भोजन उपरात
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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