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________________ सूत्र-विभाग-३६ दश प्रत्याख्यानों के पृथक्-पृथक् पाठ [ २१९ उसमे 'महत्तर-आकार' विशेष रक्खा है तथा 'पौरुपी' का काल अल्प होने से उसमे 'महत्तर-आकार' नही रक्खा है। 'नमस्कार सहित' का काल अति अल्प होने से उसमे 'प्रच्छन्न-कालादि' चार आकार भी नही रक्खे है। ४. 'एकाशन' का प्रत्याख्यान, पाठ एगासरणं दोनो पुत (नितब; कटि और जघा (एकाशन) - के मध्य भाग) को बिना हिलाए एक प्रासन से एक बार भोजन उपरात पच्चक्खामि । तिविह पि प्राहारं-१. असरणं २. खाइम ३. साइम (अथवा) चउन्विह पि आहार-१ असरण २ पारणं ३. खाइमे ४ साइमं । १ अन्नत्थरणाभोगेणं २ सहसागारेरण ३ सागारियागारेरण- : (साधु के लिए सभी गृहस्थ, तथा (सागारिका-कार) - गृहस्थो के लिए क्रूर दृष्टि वाले, लोभी, जुगुप्सनीय आदिपुरुष, जिसके सामने भोजन नही किया जाता, उसके लिए स्थान परिवर्तन करना पडे। ४. पाउंटरण. पसारणेग : दोनो पुतो के अतिरिक्त अगो को (आकुचन प्रसारण) सिकौडू, प्रसारू, हिलाऊँ, ५. गुरु अम्भुट्ठारोग : (साधु के लिए बड़े या पाहुने साधु, (गुरु अभ्युत्थान) तथा गृहस्थ के लिए कोई भी) साधु ग्राने पर उनके विनय के लिए उठना पड़े। ' पारिठावरिणयागारेण : लाया हुअा अाहार बच जाय तो,
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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