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३. पच्छन्न-कालेरणं (प्रच्छन्न-काल )
४. दिसामोहरणं (दिशां - मोह)
सुवोध जैन पाठमाला - भाग २
५. साहु-वयरगं ( साधु- वचन )
वोसिरामि ।
: मेघ, ग्रांची, पर्वत ग्रादि के कारण सूर्य ग्रहश्य होने से, या घडी आदि के अभाव से
६. महत्तरा - गारेणं ७ सव्व-समाहि-वत्तिया - गारेणं B
: या अन्य दिशा में पूर्व दिशा की भ्रान्ति के कारण 'सूर्य बहुत ऊपर चढ गया' इस समझ से, या घडी , आदि देखने मे भ्रान्ति हो जाने से : या प्रामाणिक पुरुष के कथन मे भ्रान्ति रह जाने से या घडी आगे होने से काल का ज्ञान शुद्ध न होने पर काल से पहले प्रहार ग्रहरण हो जाय तो ग्राकार (ग्रागार) तथा
उग्गए सूरे पुरिम (पूर्वार्ध)
श्रव (पार्व)
३. 'पूर्वार्द्ध का प्रत्याख्यान पाठ
: सूर्य उदय से लेकर
: दो प्रहर ग्रर्थात् दिन तक या : तीन प्रहर ग्रर्थात् दिन तक पच्चक्खामि चउव्विह पि श्रहारं - १. प्रसरण २. पा ३. साइमं ४. साइमं । १. अन्नत्यरणा - भोगेणं २. सहसा - गारेग ३- पच्छन्न-कालें ४ दिसा-मोहरणं ५. साहु-वयरणे ६० महत्तरा-गारे ७ः सव्व-समाहि-वत्तिया गारेणं । चोनिरामि ।
'पौषी' और 'पूर्वार्ध' के प्रत्यास्थान का पाठ प्रायः समान है । 'पूर्वार्ध' का प्रत्याख्यान विशेष काल का होने से,