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२२२ ] सुवोध जैन पाठमाला-भाग २ पच्चवखामि : तीन या चारो आहार का 'एकाशन,
या 'एकस्थान सहित' त्याग करता हूँ। १. अन्नत्थरणाभोगेरण २. सहसागारेरणं ३. लेवा-लेवेरणं ४. गिहत्थ-संसट्ठरणं ५. उक्खित्त-विवेगेरणं ६. पडुच्च-मक्खिएणं : सर्वथा रूखी न रहे, इसलिए रोटी (प्रतीत्य-म्रक्षित) आदि पर साधारण लेप लगा हों,
दाल मे छमका हो, शाक मे खटाई हो, उसका या छाछ आदि का
आहार करू, तो आगार तथा ७. पारिद्वावरिगया-गारेग ८. महत्तरा-गारेण ६. सवसमाहि-वत्तिया-गारेरणं। वोसिरामि ।
'पायबिल' और 'निविकृतिक' का प्रत्याख्यान पाठ प्रायः समान है। 'निर्विकृतिक' मे लवण-मिर्च आदि सस्कार का तथा विगय के साधारण लेप का उपयोग हो सकता है, परन्तु प्रायबिल 'मे नहीं हो सकता।' यही दोनो प्रत्याख्यानो में अन्तर है। वैसे 'निर्विकृतिक' मे सामान्यतया लूखी रोटी और छाछ ही खाई जाती है।
८ 'उपवास' का प्रत्याख्यान पाठ उग्गए सूरे : सूर्योदय से लेकर अभत्तट्ठ (अभक्तार्थ) : चतुर्थ भक्त या उपवास
पच्चक्खामि । तिविहं पि अाहार १. असरण २. खाइम ३. साइमं (अथवा) चउविहं पि आहार १. प्रसरणं २ पारण ३. खाइमं ४. साइमं । १. अन्नत्थरणाभोगेरणं २. सहसागारेग ३. पारिद्वावरिणयागारेगः