SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१६ ] . सुबोध जैन पाठमाला-भाग २ बुद्धिनाश और पित्ती, मकडी से कोढ, जूमो से जलोदर, बाल से स्वर भग, इस प्रकार विभिन्न वस्तुएँ रात्रि-भोजन के साथ मे खाने मे आ जाने पर विभिन्न रोग उत्पन्न होते है। इत्यादि रात्रि भोजन मे कई हानियां हैं, जो रात्रि भोजन त्याग से टल जाती है। पोरलौकिक लाभ--विना कारण रुचिपूर्वक रात्रि भोजन करने वाले, अगले जन्मो मे कौना, उल्लू, बिल्ली, गीध, सूअर, साँप, बिच्छू, गोह आदि रात्रि-भोजी, अभक्ष्य भोजी और घृणित भोजी पशु-पक्षी आदि बनते है। तथा नियमपूर्वक दृढ रहकर रात्रि-भोजन का त्याग पालने वाले देव और वहाँ से आर्य मनुष्य बनते है। ६. कर्त्तव्य 'सूर्य उदय नही हा या अस्त हो चुका है।' इसका विशेष ध्यान रखना। सूर्योदय के पश्चात् नमस्कार सहित तथा सूर्यास्त के ५-१० मिनिट पूर्व 'दिवस चरम' का प्रत्याख्यान करना, जिससे रात्रि-भोजन त्याग मे दोष लगने की सभावना न रहे। सायकाल भोजन अति मात्रा में नही करना, जिससे रात्रि को विशेष प्यास न लगे। तथा पानी अतिमात्रा मे नही पीना, जिससे भविष्य में रात्रि को अवास्तविक प्यास न लगे तथा स्वास्थ्य विकृत न हो। जहाँ दिन रहते भोजन मिलने की सभावना न हो, वहाँ के लिए पहले से विवेक रखना तथा, यथा शक्य रात्रिनिर्मित न खाना । ७. सावना • सूक्तादि पर विचार करना 'मुनियो के समान रात को लाया हुया और रात्रि में रक्ग्वा हया भोजन भी न करने वाला कत्र वनगा।' वह मनोरथ करना। रात्रि
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy