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२१४ ] सुवोध जैन पाठमाला- भाग २ 'जैसे भोजन मे काम आने वाले द्रव्यो की जाति, सख्या, भार आदि से प्रमाण करना, सातवे व्रत मे आता है, वैसे ही 'मै उन द्रव्यो को रात्रि मे नही खाऊँगा' इस प्रकार काल से प्रत्याख्यान करना, भो सातवे व्रत मे पाता है।'
४ प्रकार : रात्रि भोजन का त्याग नाना प्रकार से हो सकता है, जैसे-१. यावज्जीवन के लिए रात्रि को चारो आहार का त्याग या २ पानी को छोडकर शेष तीन पाहार का त्याग या ३. पानी और स्वाद्य को छोडकर शेप दो आहार का त्याग । अथवा वर्ष मे पर्व तिथियो को या . .. " इतने दिनो तक रात्रि को ४. चार, ५ तीन या ६. दो आहार का त्याग ।
५. लाभ : १. रात्रि भोजन करने वाले, गरम-गरम भोजन करने की इच्छा यादि के कारण प्राय रात्रि को भोजन वनाते है या वनवाते है। उस समय दीपक के मन्द प्रकाश सेदिखाई न देने वाले, अर्थात् सूर्य के तीव्र प्रकाश से दिखाई देने वाले सूक्ष्म जीव-जन्तु कई बार मर जाते हैं। कुछ वार पूरे अन्धेरे मे भोजन बनाने पर तो बडे-बडे जीव-जन्तु भी मर जाते हैं । रात्रि भोजन के त्याग से रात्रि मे भोजन कम बनता है, जिससे अहिंसा का लाभ होता है। २. ३. रात्रि भोजन के त्याग से, माता-पिता, साथी-स्वजन आदि से चोरी-छिपे रात को होटल आदि मे चाय-पकौडो, मिठाई यादि खाने का स्वभाव तथा उस सवव मे उनके सामने झूठ बोलने का स्वभाव छूटता है। ४ रात्रि भोजन से होने वाले अब्रह्मचर्य सम्बधी विकार, जसेभोग भावना, अति भोग, दु.स्वप्न, आदि नहीं होते। ५. सारे दिन भर तथा रात्रि को भी बहुत अधिक समय तक धन कमाने की तृपणा मन्द पड़ती है। ६ रात्रि भोजन के अभाव मे जो