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सूत्र-विभाग-३५ 'रात्रि-भोजन त्याग' निबन्ध
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प्र० : आगामी काल के प्रत्याख्यान का प्रतिक्रमण कैसे होता है ?
उ० यदि आगामी काल के प्रत्याख्यान श्रद्धा के साथ, विनय के साथ, सम्यकतया पाठोच्चारण के साथ तथा शुद्ध भाव आदि से साथ धारण न किये हो, तो उसका प्रतिक्रमण होता है।
'रात्रि-भोजन त्याग' निबंध
छठे प्रत्याख्यान आवश्यक मे जो 'नमस्कार सहित' . (नवकारसी) आदि प्रत्याख्यान बताये है, उनके पूर्व मे रात्रि भोजन का त्याग मुख्य रूप से समाया हुआ है, अतः रात्रि भोजन के त्याग पर विचार किया जाता है।
१. सूक्त : १. 'अहो निच्च तवोकम्म, एगभत्त च भोयण' जो रात्रि भोजन न करके केवल एक (दिन) भक्त ही करता है, अहो, वह धन्य है।' क्योकि उसकी प्रत्येक अहोरात्रि तपयुक्त व्यतीत होती है। -वश०। २. रात्रि भोजन न करने वाले का, प्रतिवर्ष मे छह मास जितना समय तपोमय बन कर सार्थक हो जाता है। ३. वैष्णव मतानुसार जो रात्रि भोजन का नित्य त्याग करता है, उसे तीर्थ यात्रा करने जितना फल होता है।
२. उद्देश्य : रात्रि भोजन से मुह के द्वारा जीवो की विराधना के कारण होने वाली भाव महा हिंसा को टालना और तपोमार्ग में प्रवेश करना ।
३. स्थान : प्राचार्यों ने, रात्रि भोजन के त्याग का स्थान 'सातवें उपभोग परिभोग व्रत' मे बताया है। उनका कथन है कि