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२१२ ] सुबोध जैन पाठमाला भाग २
१. शम, २. संवेग, ३. निर्वेद, ४ अनुकम्पा और ५. प्रास्तिकता (आस्था)-ये पाँच व्यवहार समकित के लक्षण है। इनको मै धारण करता हूँ।
'प्रश्नोत्तरी प्र० : 'मिथ्यात्व का प्रतिक्रमण' किन पाठो से होता है।
उ० : मुख्यतया 'दर्शनसम्यक्त्व' के पाठ से, अठारह पाप के 'मिथ्यादर्शन शल्य' इस पाठ से तथा पच्चीस मिथ्यात्व' आदि के पाठ से होता है।
प्र० : 'अन्नत का प्रतिक्रमण' किन पाठो से होता है ?
उ० : मुख्यतया 'इच्छामि ठाएमि' के पचण्हमणुव्वयारण' आदि पाठ से, पाँच अणुव्रतो के पाठ से तथा अद्वारह पाप के हिसा, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह' के पाठ से होता है।
प्र० : 'प्रमाद और अशुभयोग का प्रतिक्रमण' किन पाठो से होता है ?
उ०: मुख्यतया 'इच्छामि ठाएमि' के 'तिण्ह गुत्तीरण' आदि पाठ से, गुणवतो के और शिक्षावतो के पाठ से, अट्ठारह पाप के 'कलह' आदि पाठ से, १४. समूच्छिम के पाठ से तथा पगाम सिज्जाए, गोयरग्ग-चरियाए, चाउक्काल सज्झायस्स, आदि के पाठ से होता है।
प्र० : 'कषाय का प्रतिक्रमण' किन पाठो से होता है ?
उ० : मुख्यतया 'इच्छामि ठाएमि' के 'चउण्ह कसायाण' के पाठ से, तथा अट्ठारह पाप के 'क्रोध, मान, माया, लोभ, इत्यादि के पाठ से होता है।