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सूत्र-विभाग-३५ समुच्चय का पाठ [२११ (सर्व-समाधि
हो जाब, उसे मिटाकर समाधि पाने प्रत्यायाकार)
के लिए औषधि आदि लेना पडे (या अन्य किसी कारण से आहार करना पडे, तो मेरा प्रत्याख्यान भय नही
होगा, इस प्रकार मै) वोसिरनि
: (अपनो अाहार प्रात्मा को) वोसि
राता हूँ।
समरचय का पाठ
पहली सामायिक, दूसरा चतुविशतिस्तव, तीसरी वन्दना, चौथा प्रतिक्रमरप, पांचवाँ कायोत्सर्ग, छठा प्रत्याख्यान-इन छह यावश्यको में जानते अनजानते जो कोई अतिचार दोष लगा हो और पाठ उच्चारण करते अक्षर, व्यञ्जन, मात्रा, अनुस्वार, पद प्रादि आगे-पीछे, उलट-पलट, न्यून-अधिक कहा हो, तो दिन सबधी तस्स मिच्छा मि दुवकड ३
१. मिथ्यात्व का प्रतिक्रमण, २. अव्रत का प्रतिक्रमण. ३. प्रमाद का प्रतिक्रमण, ४, कषाय कर प्रतिक्रमण, ५. 'अशुभयोग का प्रतिक्रमण, इन पांच प्रतिक्रमण में से कोई प्रतिक्रमरण न किया हो, तथा चलते, फिरते, उठते, बैठते, पढ़ते, गुग्गते, जानते, अजानते, १. ज्ञान, २. दर्शन, ३. चारित्र, ४. तप सम्बन्धी कोई दोष लगा हो, तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
१. गये काल का प्रतिक्रमण, २. वर्तमान काल की सामायिक और ३ आगामी काल का पच्चवखारण, इनमे जो कोई दोष लगा हो, तो तस्स मिच्छामि दुक्कड ।