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सूत्र-विभाग - ३५. 'समुच्चय प्रत्याख्यान' का पाठ [२०६
फिर यदि मुनिराज विराजते हो, तो----'मत्थएण वदामि ।' पच्चक्खारण कराइये।' यह कहकर, प्रत्याख्यान माँगे। यदि चे न हो और बड़े श्रावकजी हो, तो 'बडे श्रावकजी ! प्रत्याख्याच कराइये।' यह कहकर प्रत्याख्यान मागें। यदि दोनो ही न हो, तो फिर 'परिहत सिद्ध की साक्षी से तथा गुरुदेव की आज्ञा से' यह कहकर समुच्चय प्रत्याख्यान' के पाठ से स्वयं प्रत्याख्यान करें।
मुनिराज आदि प्रत्याख्यान करावे, तो जब वे प्रत्याख्यान के अन्त में 'वोसिरे' कहे, तब स्वय 'चोसिरामि' शब्द का उच्चाररए करें। फिर 'तहत्' (तथेति= वैसा ही स्वीका है।) यह कहकर पहली सामायिक आदि अन्तिम पाठ पढे। फिर नीचे दाहिना घुटना भूमि पर और बाया घुटनर खड़ा रखकर विधि सहित दो 'नमोत्थुरण' दे।
छठा प्रावश्यक समाप्त ॥ फिर मुनिराज बिराजते हो, तो बडे श्रावक वन्दना करने, उसके पश्चात् क्रम से विधि सहित उन्हे चन्दना करे, सुखसाता पूछे और क्षमायाचना करें। यदि न हो, तो पूर्व या उत्तर दिशा मे मुह करके महावीर स्वामी यर सीमधर स्वामी को तथा अपने वर्माचार्य को वन्दना करे। फिर सभी स्वधर्मी बन्धुओ से हाथ जोड शीश झुका क्षमापना करे। चाट में चौबीसी आदि स्तवन का उच्चाररए करे।
"समुच्चय प्रन्यारवान' का पाठ
जग्गए सूरे
: (रात्रि को तिविहाहार, चउ विहाहार प्रादि जो किया, उस