________________
२०८ ]
सुवोध जैन पाठमाला - भाग २
होती है, अत चार लोगस्य से पाँच गुने या तिगुने (२० या १२) लोगस्स का विशेष बडा ध्यान श्रावश्यक होता है तथा सावत्सरिक प्रतिक्रमण मे वर्ष भर मे लगे प्रतिचारो की शुद्धि करनी होती है, अत चार लोगस्स से दश गुने (दो नमस्कार मंत्र रूप शिखर सहित ) या पाँच गुने (२० या ४० ) लोगस्स का बहुत बड़ा ध्यान प्रावश्यक होता है ।
*
पाठ ३५ पैंतीसवाँ
छठा आवश्यक
पाँचवाँ ग्रावश्यक समाप्त हो जाने पर वन्दन करके पहला सामायिक, दूसरा चउवीसत्थव, तीसरी वन्दना, चौथा प्रतिक्रमण, पाँचवा कायोत्सर्ग - ये पाँच आवश्यक पूरे हुए । छठे आवश्यक की आज्ञा है ।' यह कह कर छठे आवश्यक की प्राज्ञा ले ।
फिर मन में सूर्योदय उपरांत नमस्कारसहित (नवकारसी) प्रादि जो बन सके, उसे करने की धारणा करे । जहाँ तक हो सके, सम्पूर्ण रात्रि के लिए चतुविधाहार ( चउविहाहार) की धारणा करें। यदि न बने, तो ग्रल्प-से-अल्प आधी रात तक त्रिविधाहार (तिविहाहार ) ग्रौर शेष रात्रि के लिए चतुविधाहार की धारणा करे । प्रातःकाल के 'रात्रिक प्रतिक्रमण' मे, सध्या के 'देवसिक प्रतिक्रमण' मे जो प्रत्याख्यान धारण किये थे, उनमें भावना और अवसर के अनुसार वृद्धि करे तथा १४ नियम या प्रहिंसादि सक्षेप के नियमो को धारण करे |
1